Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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Famous Couplets-9

 




(81)
नेकनामी से मेरी खुश कौन है,
क्या बुरा था मैं अगर बदनाम था !(क़ादरी)

(82)
कुछ दर्द है मुंनिबों की लय में,
कुछ आग भरी हुई है नै में !(शेफ्ता)

(83)
नोक-ए-अब्रू को तान लेते हैं,
किस अदा से वो जान लेते है !(अदम)

(84)
लगा रहा हूँ मज़ामीन-ए-नौ के मैं अम्बर,
खबर करो मेरे ख़िरमन के ख़ोशाचीनों को !(अनीस)

(85)
वो चश्म-ए-मस्त फिर उसपर वो पंज-ए-मिज़गां ,
कि जैसे हाथ किसी नाज़नीं का साग़र पर !(दाग)

(86)
जान ही दे दी "जिगर" ने आज पा-ए-यार पर,
उम्र भर की बेक़रारी को क़रार आ ही गया !(ज़िगर)

(87)
कुछ तो मेरे पिंदार-ए-मुहब्बत का भरम रख,
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ !(फ़राज़)

(88)
शाम से सुबह तलक जाम रहे गर्दिश में,
करम-ए-पीर-ए-खराबात से कुछ दूर नहीं (चकबिस्त)

(89)
मैं कोसता हूँ पुख्तगी-ए-तजरुबात को,
अपने ही घर में मेरी शनासाई कम हुई !(नाज़िश)

(90)
बड़ी पेच-दर-पेच थी राह-ए-दहर,
खुदा हमको लाया,खुदा ले गया !(मीनाई)

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