Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)
Famous Couplets Page no.28
271.
उधर है मंजिल-ए-मक़सूद अपनी,
कि जिस ज़ानिब कोई रस्ता न जाये। (ख़लिश)
272.
उनकी आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू,
कि तबियत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी। (ज़फर)
273.
दिल जला, फिर खुद जले, फिर सारी दुनिया जल उठी,
सोज़ लाये थे ब-मिक़्दार-ए-पर-ए-परवाना हम। (सीमाब)
274.
उम्र भर किया मीज़ान जो मैंने "तालिब",
वज़्न ख़ुशियों का मेरे ग़म के बराबर निकला (तालिब)
275.
मैं अपनी ज़ात की किस तह में मुंतक़िल हो जाऊँ,
खुले हुए हैं दर-ए-इंतिखाब चारों तरफ। (ज़हीर)
276.
प्यार को मूजिब-ए-आज़ार न समझा जाये,
ये हंसी गुल है, इसे खार न समझा जाये। (मंशा)
277.
मुझे बुलाके यहां आप चुप हाय कोई,
वो मेहमाँ हूँ जिसे मेज़बाँ नहीं मिलता।(फ़ानी)
278.
पूछिए मैकशों से लुत्फ़-ए-शराब,
ये मज़ा पाकबाज़ क्या जाने। (दाग़)
279.
ये मोजिज़ा भी महब्बत कभी दिखाए मुझे ,
कि संग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आये मुझे।(क़ातिल)
280.
पूछा न इस ज़माने में उल्फत का हाल कुछ ,
इक रस्म थी क़दीम, सो मौक़ूफ़ हो गई। (अमीर)