Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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Indian Classical Music
 

Famous Couplets Page no.29

 

 

 

 


(281)
न हुआ सुकूँ मयस्सर मुझे बहर-ए-ज़िन्दगी में,
किसी मौज ने डुबोया किसी मौज ने उभरा। (अलम)

 

(282)
मय ग़रज़ निशात है किस रूसियाह को,
यकगूना बेखुदी मुझे दिन रात चाहिए। (ग़ालिब)

 

(283)
हाँ, कभी याकूत से होंठों को जुंबिश दे ज़रा ,
गोश-बर-आवाज़ है कबसे सितारों के नगर। (असलम)

 

(284)
कोई युसूफ ही नहीं रौनक़-ए-ज़िन्दाँ के लिए ,
मिस्र के शहर में अब भी हैं खरीदार बहुत। (क़ौसर)

 

(285)
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा, तेरे पीछे ,
तू देख कि क्या रंग है तेरा, मेरे आगे। (ग़ालिब)

 

(286)
राइजुल वक़्त रिवायत हो तो क़द्र ,
टूट जाये तो अभागन बन जाये। (ज़हीर)

 

(287)
मुझे दैर-ओ-हरम से वास्ता क्या , रिन्दमश्रब हूँ ,
वही ईमान है जो कुछ कहे पीर-ए-मूगाँ मेरा। (चकबिस्त)

 

(288)
ये रुकूअ क्या, ये क़याम क्या, ये सुजूद क्या, ये सलाम क्या ,
फ़क़त इक फरेब-ए-नियाज़ है, जो न महवियत हो नमाज़ में। (सीमाब)

 

(289)
रू-ए-सुखन किसी तरफ और नज़र कहीं ,
मैं उनके देखने की अदा देखता रहा। (क़ादरी)

 

(290)
लफ़्ज़ों के रेगज़ार में मफ़्हूम खो गए,
सब बात तोलते हैं कोई छानता नहीं। (शाहिद)

 

 

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