Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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Famous Couplets-16




(151)
किसी ग़म में न तप कर जब तलक दिल पर निखार आये,
न जीने ही का ढंग आये न मरने का शिआर आये !(मुल्ला)

(152)
शीआ हो,ख्व्वाह सुन्नी,लाला हो या बिरहमन,
मज़हब को मूरिसों से पाते हैं सब अमूमन !(अकबर)

(153)
न जाने कब से भटकती हूँ राह में उसकी,
झुलस गया है बदन धूप की शुआओं से !(रौनक)

(154)
बे पिए शेख फरिश्ता था मगर,
पी के इंसान हुआ जाता है !(शकील)

(155)
अच्छी सूरत भी क्या बुरी शै है,
जिसने डाली बुरी नज़र डाली (मीनाई)

(156)
मुस्कुराकर वो शोख कहता है ,
आज बिजली गिरी कहीं न कहीं !(मीर)

(157)
हमको है हर शाम कुछ शमएँ जला लेने का शौक़,
किसको फुर्सत है यहां आने की,आता कौन है !(सईदा)

(158)
मैंने मजनूँ पे लड़कपन में "असद",
संग उठाया था कि सर याद आया (ग़ालिब)

(159)
मैं कहाँ जाऊं क्या करूँ,या रब,
सारा आलम मेरे मकां सा है !(क़ादरी)

(160)
कमाल-ए-बेखुदी में गिर पड़ा हूँ,
मेरा सिज्दा अभी सिज्दा कहाँ है !(सोज़)

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