Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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Famous Couplets-8




(71)
शाना हिला हिला के जलाते हैं रोज़-ओ-शब्,
जितने पयाम है मेरे देर आश्ना के हैं ! (शाज़ )

(72)
दैर काबा से जुड़ा, काबा कलीसा से जुदा,
इनको मैखाने के संगम पे मिला दे साक़ी ! ( बेदार )

(73)
मेरी हवस को ऐश-ए-दो आलम भी था क़ुबूल ,
तेरा करम, कि तूने दिया दिल दुखा हुआ ! ( फानी )

(74)
हर एक दौर का मज़हब नया खुदा लाया ,
करें तो हम भी, मगर किस खुदा की बात करें ! ( साहिर )

(75)
हम इस बहार को नंग-ए-बहार क्यों न कहे ,
कली के होंठ तरसते हैं मुस्कुराने को ! ( ज़ैदी )

(76)
न जाने मुहब्बत का अंजाम क्या है ,
मैं अब हर तसल्ली से घबरा रहा हूँ ! ( दानिश )


(77)
आसान तुम न समझो निख़्वत से पाक होना ,
इक उम्र खो के हमने सीखा है खाक़ होना ! ( हसन )

(78)
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को,
ये खलिश कहाँ से होती जो ज़िगर के पार होता ! ( ग़ालिब )

(79)
हस्ती के नुकात पूछता है ,
ग़ाफ़िल तुझे अपनी भी खबर है ! ( ज़िगर )

(80)
रोना कहाँ हुआ मुझे दिल खोलकर नसीब,
दो आंसुओ में नूह का तूफ़ान आ गया "रंजन" ! ( रंजन )

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