Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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Famous Couplets-5




(41)
दिल-ए-नाला-सरा से न बहलेगी तबियत,
सदा-ए-चंग-ओ-नए सुन,नवा-ए-बेनवा क्या ! (सीमाब)

(42)
कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बेअसर,
परदे में गुल के लाख ज़िगर चाक हो गए ! (ग़ालिब)

(43)
इश्क़ की चिंगारियों को फिर हवा देने लगे,
मेरे पास आकर वो दुश्मन को दुआ देने लगे ! (शकील)

(44)
झिड़की सही,अदा सही,चीन-ए-जबीं सही,
ये सब सही पर एक नहीं की,नहीं सही ! (इंसा)

(45)
हमारे शहर में बे-चेहरा लोग बसते हैं,
कभी कभी कोई चेहरा दिखाई पड़ता है ! (जानिसार अख्तर )


(46)
मैं चोब-ए-नम हूँ,इसी तरह मुद्दतों "हुरमत",
मेरे वज़ूद को दिल का धुंआ पुकारेगा ! (हुरमत)

(47)
हमारी जंग अंधेरों से है,हवा से नहीं,
दिया जला के न यूँ सामने हवा के रख ! (अकबर हमीदी )

(48)
देख तो दिल कि जाँ से उठता है,
ये धुंआ सा कहाँ से उठता है ! (मीर तक़ी मीर )

(49)
मर्द-ए-मैदान-ए-मुहब्बत,ज़िंदा-ए-जावेद है,
मौत आ जाने से तो इंसान मर जाता नहीं ! (चकबिस्त)

(50)
हर ज़ी-हयात इसमें रहे उम्र भर असीर,
तार-ए-नफस भी एक तरह क़ी कमंद है ! (तनवीर)

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