Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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(201)
हमसे क्या हो सका मुहब्बत में,
तूने तो खैर बेवफाई की !! (फ़िराक़)


(202)
सब जानते हैं मुझको सियासत के नाम से,
दुनिया में फैलता हुआ ख़ौफ़-ओ-हिरास हूँ !!(अर्श)

(203)
हुस्न को कर नियाज़मन्द मेरे हरीम-ए-शौक़ का,
वल्वल-ए-अयाज़ दे, सतवत-ए-ग़ज़नवी न दे !!(सीमाब)

(204)
सुन के तेरा नाम आंखे खोल देता था कोई,
आज तेरा नाम लेकर कोई ग़ाफ़िल हो गया !!(फ़ानी)

(205)
दिल को ले लीजिये जो लेना है ,
फिर ये सौदा गिराँ न हो जाये !!(जिगर)

(206)
बाग़-ए-हस्ती का था इक गुंचादहन जैसा भी था,
अक्स था मेरे बदन का वो बदन जैसा भी था !!(लतीफ़)

(207)
मेरी क़िस्मत के दे के बल इनमें,
किसने गेसू तेरे सँवारे हैं !!(सदर)

(208)
लिख्खो सलाम ग़ैर के ख़त में गुलाम को,
बन्दे का बस सलाम है ऐसे सलाम को !!(मोमिन)

(209)
रह-ए-ख़िरद में जहाँ सर है, दर्द-ए-सर भी है,
कि गोमगो भी, अगर भी है, और मगर भी है !!(शिकोह)

(210)
साक़ी, ये ख़ामोशी भी तो कुछ ग़ौरतलब है,
साक़ी, तेरे मैख़्वार बड़ी देर से चुप है !!(फ़राज़)

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