Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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(191)
कुञ्ज-ऐ-क़फ़स में थी तमन्ना क़ैद से हों आज़ाद कहीं ,
खौफ है अब बेबालोपरी में न छोड़ दे सैयाद कहीं !!(रंजन)

(192)
उसे कौसर का लालच दे रहे हो ,
जो कूज़े में समंदर पी गया !!(मोईन कौसर)

(193)
कैफियत-ऐ-चस्म उसकी मुझे याद है "सौदा" ,
सागर को मेरे हाथ से लेना की चला मैं !!(सौदा)

(194)
ज़रूर हमसे हुई है कहीं पे कोताही ,
तमाम शहर में सन्नाटे हुए जाते हैं !!(शहरयार)

(195)
बात तो जब है की कौनोमकान हंसने लगे ,
आसमान पर चाँद तारों को हसीं आई तो क्या !!(इशरत)

(196)
कोई ऐसा नहीं जो गिरिया-ऐ-शबनम देखे ,
खंडा-ऐ- गुल पे ज़माने की नज़र जाती है !!(सफ़दर आह )

(197)
हम खाकनशीनों में ऐ 'कौसर' यही वाइज़ ,
इक शख्स यहां आसमान वालों की तरह है !!(कौसर)

(198)
जो मौक़ा मिल गया तो ख़िज़्र से यह बात पूछेंगे ,
जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाये !!(जोश मलीहाबादी )

(199)
जा के मिलता हूँ न अपना ही पता देता हूँ ,
मैं उसे ही नहीं खुद को भी सजा देता हूँ !!(शहीद कबीर)

(200)
बाग़ में मुझको न लेजा वरना मेरे हाल पर ,
हर गुल-ऐ-तर एक चस्म-ऐ-खूनफिशां हो जायेगा !!(ग़ालिब)

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