Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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Famous Couplets-12

 




(111)
मंज़र ही हादिसे का अजीब-ओ-ग़रीब था ,
वो आग से जला जो नदी के क़रीब था !(कलीम)


(112)
मैं जुगनुओं की तरह रात भर का चाँद हुई ,
ज़रा सी धुप निकल आई और मैं मांद हुई !(परवीन)


(113)
जिसे कभी सर-ए-मिम्बर न कह सका वाइज़ ,
वो बात अहल-ए-जुनूँ ज़ेर-ए-दार कहते हैं !(अज्ञात)


(114)
भगवान तो बस चौदह बरस घर सी रहे दूर ,
अपने लिए बनवास की मीयाद बहुत थी !(ज़फर)


(115)
मुंज़मिद बर्फ की सूरत सही तूफ़ान अभी ,
धुप चमकेगी तो ये सैल-रवां भी होगा !(शाहिद)


(116)
मूजिद इसकी है सियाहरोज़ी हमारी "आतिश" ,
हम न होते, तप न होती शब्-ए-हिज़्राँ पैदा !(आतिश)


(117)
देखना चाहो अगर तुम अपनी मेअराज-ए-सितम ,
मुस्कुरा देना मेरी बर्बादी-ए-दिल देखकर !(शकील)


(118)
अश्क़-ए-खूनीं हैं अपने हिस्से में ,
ज़ाम-ए-मै तो हुज़ूर पीते हैं !(शाद)


(119)
कुछ और है वो शायर-ए-मोजिज़ बयाँ नहीं ,
जिस के सुखन से रंग-ए-तबीयत अयाँ नहीं !(चकबिस्त)


(120)
सिर्फ़ इक दार की ताज़ीर पे मौक़ूफ़ नहीं ,
इससे बढ़कर भी तो लोगों ने सज़ा पाई है !(अमादी)

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