Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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Famous Couplets-11




(101)
फ़ौकियत किसको है किस पर ये ज़माना जाने,
बुत तराशी का हुनर मेरा है, पत्थर उसके !(राहत)

(102)
सैयाद और बंद-ए-क़फ़स से करे रिहा,
झूठी खबर किसी की उड़ाई हुई सी है !(सालिक)

(103)
यूँ काफिले से दूर मैं जाता हूँ अकेला,
हमराह मेरे बांग-ए-दर! भी नहीं होती !(सीमाब)

(104)
ज़िक़्र हूरों का है बेक़ैफ हमारे आगे,
हम तो वो रिन्द हैं जो बिन्त-ए-इनब चाहते हैं!(नज़र)

(105)
हर दीद-ए-बीना के लिए सूरत-ए-जुगनू,
भरते थे अंधेरों में जो अनवार,वो हम हैं!(शमीम)


(106)
कहने सुनने से निकल जाता है कुछ दिल का बुखार,
हाय वो कमबख्त,जिसका राजदाँ कोई न हो !(सीमाब)

(107)
अजब अदा से चमन में बहार आती है,
कली कली से मुझे बू-ए-यार आती है !(जलील)

(108)
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी,
बड़ा बे अदब हूँ,सजा चाहता हूँ !(इक़बाल)

(109)
बैन करती हुई फिरती हैं हवाएं दिल में,
राख का ढेर हुए,ख्वाब सुहाने क्या क्या !(अदीब)

(110)
क्या नज़ाकत है कि आरिज़ उनके नीले पड़ गए,
हमने तो बोसा लिया था ख्वाब में तस्वीर का !(रंजन)

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