Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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Famous Couplets-7




(61)
ऐ बाद-ए-मुखालिफ ज़रा देखूं तेरी रफ़्तार,
मुझको भी किसी रेत के तूदे में समो जा ! ( ज़हीर गाजीपुरी )

(62)
वो तेग मिल गई जिससे हुआ है क़त्ल मेरा,
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता ! ( क़ैफ़ी आज़मी )

(63)
मंजिल-ए-ग़म की तै नहीं होती,
रास्ता साथ साथ चलता है ! ( मखसूर सईदी )

(64)
दिल जलते जलते माइल-ए-फर्याद हो गया,
तोदे से राख के भी शरारे निकल पड़े ! ( जुर्म मुहम्मद आबादी )

(65)
जो सुरूर आमादा हो दिल में वो कैफ-ए-ग़म नहीं,
रंज-ओ-राहत अब हमारे वास्ते तौअम नहीं ! ( नातिक़ गुलावठी )


(66)
मर्ग-ए-मजनूँ पे अक़्ल दंग है "मीर",
क्या दीवाने ने मौत पाई है ! ( मीर तक़ी मीर )

(67)
दाइम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं,
खाक ऐसी ज़िन्दगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं ! ( ग़ालिब )

(68)
ग़म से मुझको गर कभी फुरसत हुई,
साँस लेने में बड़ी दिक्कत हुई ! ( सरदार सहर )

(69)
मान लीजै शैख़ जो दावा करे ,
इक बुज़ुर्ग-ए-दीं को हम झुठलायें क्या ! ( हाली )

(70)
दुनिया-ए-दूं कि कब तलक ग़ुलामी ,
या राहिबी कर या बादशाही ! ( इक़बाल )

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