Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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Famous Couplets-6




(51)
वो कभी मिल जाये मुझको अपनी सांसों के क़रीब,
होंठ को जुम्बिश न दूँ और गुफ़्तगू सारी करूँ ! (ज़फर गोरखपुरी)

(52)
बंदगी में घुट के रह जाती है इक जू-ए-कम आब,
और आज़ादी में बहर-ए-बेकरां है ज़िन्दगी ! (इक़बाल)

(53)
कई शै बेचनेवाला गली से जब गुजरेगा,
तो मेरी लाडली बेटी मेरी जेबें टटोलेगी ! (इमदाद हमदानी)

(54)
रंग जोइंदा,वो ए तो सही,
फूल तो फूल है,खुशबु उसकी ! (परवीन)

(55)
नहीं इश्क़ का दर्द लज्जत से खाली,
जिसे ज़ौक़ है वो मजा जानता है ! (मीर तक़ी मीर)


(56)
तंग होती जा रही है लम्हा लम्हा ज़िन्दगी,
क्यों न आखिर हम करें,दुनिया-ए-सानी की तलाश ! (ग़नी एजाज)

(57)
ता क़यामत किसी तरह न बुझे,
आग ऐसी लगा गया कोई ! ( दाग)

(58)
वही तो देश में सच्चे अहिंसाबादी हैं,
जो कर रहे हैं तिज़ारत लड़ाई दंगों की ! (नाज़िश)

(59)
तुम बजी क्या भोले हो "रहमत" उससे उम्मीद-ए-खुलूस,
जिसकी फितरत है निकम्मी,जिसकी तीनत है ख़राब ! (रहमत)

(60)
कुछ तल्खी-ए-हालात का भी हाथ है इसमें,
हम लोग अगर तुन्द शराबों की तरह है ! (परीशाँ)

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