Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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(31)
हुस्न की आमद,हुस्न की आमद,
इश्क़ ग़ज़ल ख्वां,इश्क़ ग़ज़ल ख्वां ! (ज़िया फतेहाबादी )

(32)
हुस्न का गंज-ए-गिरांमाया तुझे मिल जाता,
तूने फ़र्हाद, न खोदा कभी वीराना-ए-दिल !( इक़बाल )

(33)
गंजीना-ए-मानी का तिलिस्म उसको समझिए,
जो लफ्ज़ कि "ग़ालिब" मेरे अशआर में आए ! ( ग़ालिब )

(34)
हम ग़रीबों की ग़िज़ा तो है ग़म-ए-इंसां "अदम",
खुल्द में उसने हमें भेजा तो हम खाएंगे क्या ! ( अदम )

(35)
बे-तकल्लुफ महफिलों में दिलनशीनीं चाहिए ,
यानी कुछ ग़ीबत करें कुछ नुक्ताचीनीं चाहिए ! ( मिदहतुल अख्तर )



(36)
आवाज़ों के सहरा में जुबाँ गुंग है मेरी ,
लफज़ो का हर एक जाइका कानों से चखा है ! ( ज़हीर गाजीपुरी )

(37)
चीर जाती है क़ल्ब-ए-गेती को ,
उन निगाहों को कोई क्या जाने ! ( फिराक़ गोरखपुरी )

(38)
मुझे दे न ग़ैज़ में धमकियां,गिरें लाख बार ये बिजलियाँ ,
मेरी सल्तनत यही आशयां,मेरी मिल्कियत यही चार पर ! ( जिगर मुरादाबादी )

(39)
गो हाथ में जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है ,
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे ! ( ग़ालिब )

(40)
दिगरगूं है जहां,तारों क़ी गर्दिश तेज़ है साक़ी ,
दिल-ए-हर-ज़र्रा में,गौगा-ए-रस्तखेज है साक़ी ! ( इक़बाल )

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