Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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Famous Couplets Page no.24

 

 


231
अब उसी शहर में बरसते हैं पत्थर मुझपर ,
मैं जहाँ लाया गया था बड़ी तौक़ीर के साथ। (रहमान)

 

232
शायरी में न रहा ज़ज़्बा-औ-अहसास को दख़्ल,
अब इसे क़ौम की ख़िदमत पे लगाया जाये। (अल्मास )

 

233
लाज़िम नहीं सफर हो दायरा-नुमा ,
हम फिर न आ सकेंगे जो अबके बरस गए। (चिस्ती )

 

234
तेरे आने पर तो कुछ सम्हला था हाल ,
तेरे जाते ही दिगरगूं हो गया। (सहगल)

 

235
हो जगह ऐ "उमर" जिस की दिल में ,
कैसे कह दूँ ग़म-ऐ-दिगराँ है। (उमर)

 

236
रहा ना याद मुझे ज़िंदगी का चेहरा भी ,
कहीं मिले भी तो शायद दुआ सलाम न हो। (ज़ाफ़री)

 

237
अपना इतना क़ुसूर था "शाहिद",
बोलना था जो दू-ब-दू बोला। (शाहिद)

 

238
वो अज़नबी था तो क्यों मुझसे फेर कर आँखे ,
गुज़र गया किसी देरीना आशना की तरह। (फ़राज़)

 

239
निकलकर दैर-औ-काबा से अगर मिलता न मैखाना ,
तो ठुकराए हुए इंसां, खुदा जाने कहाँ जाते। (शिफ़ाई)

 

240
क्यों सलामत है निज़ाम-ऐ-दोजहाँ,
अपनी ज़ुल्फ़ों को वो बरहम कर चुके। (शीरानी)

 

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