Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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Famous Couplets---23




(221)
अब वही ज़ख्म ज़ेब-ऐ-तन होगा ,
ज़िक्र जिसका चमन चमन होगा !!(क़ादरी)

(222)
ज़ोफ़ है या ख़ुशी मंज़िल की ,
पांव क्यों डगमगाए जाते हैं !!(अदम)

(223)
सर्द-वो-बेरंग है यहां मौसम ,
जाने कब आये ज़ोफ़िशां मौसम !!(फ़िरोज़)

(224)
जब तक के तंगदस्त था ईमानदार था ,
दौलत मिली तो शैख़ की नीयत बदल गई !!(ग़ुबार)

(225)
मुरीद-ऐ-सादा तो रो रो के हो गया ताइब ,
ख़ुदा करे के मिले शैख़ को भी ये तौफ़ीक़ !!(इक़बाल)

(226)
हम भी खूब तरसे हैं इक तबस्सुम को ,
एक तिफ़्ल को तरसे कोई बाँझ ज़न जैसे !!(ज़फर)

(227)
तिरछी नज़रों से न देखो आशिक़-ऐ-दिलगीर को ,
कैसे तीरंदाज़ हो सीधा तो कर लो तीर को (वज़ीर)

(228)
ज़िंदगी क्या थी हमारी, इक हवा-ऐ-तुन्दो तेज़ ,
ऐ "खलिश" हम भी कभी चलती हुई तलवार थे !!(क़ादरी)

(229)
आपका सौदाई है ,काफ़िर हो या दीनदार हो ,
बात इतनी है अब इसका जिस क़दर तूमार हो !!(बेताब)

(230)
चलता हूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़ रौ के साथ ,
पहचानता नहीं हूँ अभी रहबर को मैं !!(ग़ालिब)

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