Ghazals Of Ghalib

The Almighty Of Rekhta

Mirza Asadullah Khan (Ghalib)-27-12-1797(Agra) To 15-02-1869 (Delhi)

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(131)
कभी रेग-ए-रवां से प्यास बुझ जाती है रहरौ की ,
कभी दरिया के हाथों तश्नगी तक़सीम होती है !(शाज़)

(132)
दश्त-ए-ग़ुरबत में रुलाते हैं हमें याद आ कर ,
ऐ वतन,तेरे गुल-ओ-सुम्बुल-ओ-रैहान क्या-क्या !(शीरानी)

(133)
गिन गिन के रोज़ करते हैं वो आशिक़ों को क़त्ल ,
हर रोज़ उनके कूचे में रोज़-ए-शुमार है !(नसीम)

(134)
किसने खोला है हवा में गेसुओं को नाज़ से ,
नर्म रौ बरसात की आवाज़ आती है मुझे !(आदम)

(135)
है 'बयां' मान-ए-तरक़्क़ी कौन ,
उज़्र सब लंग है बहाने के !(बयान मेरठी)

(136)
हमें लाइल्म रखते हैं हमेशा अपने बारे में ,
वो हमसे सारी बातों की वज़ाहत मांग लेते हैं !(नूरीन)

(137)
मुझको मुश्ताक़-ए-लिका जान के कहता है वो शोख ,
बर न आई हो ऐ मेरी हवस-ए-खाम कहीं !(हसरत मोहनी)

(138)
मेरी ज़ुबान की लुक़नत से बदगुमान न हो ,
जो तू कहे तो तुझे उम्र भर मिलूं भी नहीं !(अहमद)

(139)
सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन ,
होश उड़ जाते हैं अब भी तेरी आवाज़ के साथ !(आसी)

(140)
ज़िंदा-ए-जावेद हैं रस्म-ए-महब्बत से ऐ नाम ,
क़ैस अभी सहरा में है लैला अभी महमिल में है !(नातिक़)

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